निष्कर्ष में यह कहना चाहिए की यदि द्रष्ट ग्रह यदि भाव मध्य हो तो ही उस पर दृष्टि का प्रभाव मानना चाहिए। इसके साथ ही यहाँ पर द्रष्टा ग्रह के लिए भी विचारणीय अंश यह है कि
ध्यान दें - वक्री की अलग और अस्त ग्रह की दृष्टि में अंतर होगा ।
कुछ ग्रहों की दृष्टि में विशेषता है जिसे भी अवश्य देखना चाहिए ।
श्लोक में बताया गया है कि
आगे बढ़ने के पहले यहाँ विचार करते हैं की गुरु की दृष्टि इन भावों पर होने के क्या कारण हो सकते हैं
यह विचार गुरु गम्य और शोध गम्य है गुरु की कुंडली में स्थिति के अनुसार तीनो में से कोई एक या दो या फिर तीनों राशियाँ प्रभावित होंगी। यहाँ ऐसा भी होता है की कभी कभी तीनों में से कोई भी दृष्टि प्रभावित नहीं है।
आपकी कुंडली में गुरु की क्या भूमिका है और कितना उसका प्रभाव है और वह कितना फल देगा इसका विचार भी करना चाहिए । इसके लिए अलग से शोध संस्थान में संपर्क करने पर विचार किया जा सकता है।
ध्यान दें - जरुरी नहीं की गुरु आपकी कुंडली में उच्च का है तो वह अच्छा फल देगा और नीच का है तो बुरा । या ये कहें की उच्च होने पर पूरा फल दे और नीच में अधूरा। इन सभी फलों में अंतर होगा। हमने इतने सालो में कई ऐसी कुंडलियों में गुरु को देखा उच्च का है पर फल नहीं दिया करक था भाव मध्य था फल नहीं दिया और कुछ में नीच था कमज़ोर था फिर भी फल दिया । इन सभी को देखने के बाद हमने कई कुंडलियों में इस पर अध्ययन किया। जो तथ्य मेरे द्वारा दिए जा रहे हैं ये खुद के हैं हो सकता है किसी विद्वान के अपने मत हों ।
क्रमशः
- यदि देखने वाला ग्रह निम्न अंशों का है तो उसकी दृष्टि भी कमज़ोर होगी
- यदि देखने वाला ग्रह संधि गत है तो उसकी दृष्टि पूर्ण नहीं होगी अपितु कमज़ोर होगी ।
- देखने वाला ग्रह वक्री हो अस्त हो तो भी उसकी दृष्टि बदलेगी ।
ध्यान दें - वक्री की अलग और अस्त ग्रह की दृष्टि में अंतर होगा ।
कुछ ग्रहों की दृष्टि में विशेषता है जिसे भी अवश्य देखना चाहिए ।
श्लोक में बताया गया है कि
- गुरु सप्तम के अलावा 5 और 9 स्थान को देखता है।
आगे बढ़ने के पहले यहाँ विचार करते हैं की गुरु की दृष्टि इन भावों पर होने के क्या कारण हो सकते हैं
अब यहाँ प्रश्न यह उठता है की गुरु की इन तीनो दृष्टि में क्या तीनों ही बलवान हैं ?
- गुरु ज्ञान का कारक है सभी ज्योतिषी लोग इस बात को अच्छी तरह से जानते हैं की कुंडली में 5th house knowledge का स्थान है और गुरु उसका नैसर्गिक कारक है । इसलिए गुरु कहीं पर मन्त्रेश्वर के अनुसार भावात् भावं के अनुसार गुरु अपने स्थान 5th स्थान में प्रभाव डालेगा ही ॥
- नवम अर्थात 9th house कुंडली में धर्म यज्ञ आदि का स्थान है और गुरु इसका भी कारक है इसलिए गुरु अपने स्थान से नवम को भी देखेगा।
यह विचार गुरु गम्य और शोध गम्य है गुरु की कुंडली में स्थिति के अनुसार तीनो में से कोई एक या दो या फिर तीनों राशियाँ प्रभावित होंगी। यहाँ ऐसा भी होता है की कभी कभी तीनों में से कोई भी दृष्टि प्रभावित नहीं है।
आपकी कुंडली में गुरु की क्या भूमिका है और कितना उसका प्रभाव है और वह कितना फल देगा इसका विचार भी करना चाहिए । इसके लिए अलग से शोध संस्थान में संपर्क करने पर विचार किया जा सकता है।
ध्यान दें - जरुरी नहीं की गुरु आपकी कुंडली में उच्च का है तो वह अच्छा फल देगा और नीच का है तो बुरा । या ये कहें की उच्च होने पर पूरा फल दे और नीच में अधूरा। इन सभी फलों में अंतर होगा। हमने इतने सालो में कई ऐसी कुंडलियों में गुरु को देखा उच्च का है पर फल नहीं दिया करक था भाव मध्य था फल नहीं दिया और कुछ में नीच था कमज़ोर था फिर भी फल दिया । इन सभी को देखने के बाद हमने कई कुंडलियों में इस पर अध्ययन किया। जो तथ्य मेरे द्वारा दिए जा रहे हैं ये खुद के हैं हो सकता है किसी विद्वान के अपने मत हों ।
क्रमशः