Friday, July 15, 2016

पाराशर के अनुसार ग्रह दृष्टि

पश्यन्ति सप्तमं सर्वे शनि जीव कुजः पुनः । 
विशेषतश्च त्रिदशत्रिकोणचतुरष्टमान् ||
भावः - यहाँ पर ग्रहों की दृष्टि के बारे में बतलाते हुए पाराशर जी का कहना है कि सभी ग्रह सप्तम स्थान को देखते हैं 
मतलब यह की ग्रह जहां पर है उस स्थान से सप्तम स्थान को देखेगा
इसमें विद्वानों को कई जगह संदेह उत्पन्न होता है 
१- क्या सप्तम के साथ साथ उस स्थान पर बैठे ग्रह को देखेगा?
२- क्या उस भाव के सम्पूर्ण अंश पर अपना प्रभाव डालेगा?
३- क्या उस भाव के सम्पूर्ण फलों को प्रभावित करेगा?
इन सभी विषयों का  यदि क्रमशः विचार करें तो विषय स्पष्ट हो जाएगा 
प्रथम तो यह कि ग्रह की दृष्टि का प्रभाव भाव या ग्रह या दोनों पर 
इसके विषय में पूर्वाचार्यों का एकमत है कि भाव और ग्रह दोनों पर दृष्टि का प्रभाव रहेगा । 
इसमें कुछ तर्क जरूर हैं जो विचारणीय भी अवश्य हैं । ठीक है कि दृष्टि दोनों पर होगी परन्तु क्या दोनों पर प्रभाव पूरी तरह से होगा ? इसको यदि विस्तार में समझे तो स्पष्ट होगा की भाव और ग्रह के अपने राशि अंश कला  विकला आदि मान  होते हैं। यदि ग्रह संधि में है या भाव से दूर है तो उस पर दृष्टि तो रहेगी पर पूर्ण रूप से प्रभाव नहीं होगा। इस तरह से फल कथन की परम्परा यद्यपि कम दिखाई देती है परन्तु इसको नकारा नहीं जा सकता। तो हम कह सकते हैं कि यदि  दृष्ट ग्रह  भाव मध्य में नहीं है तो उस पर दृष्टी का प्रभाव पूरा नहीं होगा। 
अब इसी के दूसरे अंश पर विचार करते हैं कि देखने वाला ग्रह यदि स्वयं भाव से दूर हो या निम्नांश का हो तो भी प्रभाव कम होगा और शायद नहीं भी होगा।   इस विषय में आचार्यो को अवश्य विचार करना चाहिए यदि ऐसा नहीं द्वादश भाव और संधि की गणितागत कल्पना भी प्रश्न चिह्न में आ जाएगी ग्रहों का संधि में जाना भी असत्य हो जायेगा। दृष्टि विचार बहुत ही मह त्त्वपूर्ण है इसका विचार  क्रमशः -------- 
 



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